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केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर

PMFBY: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसान संग बीमा कंपनियों का हुआ कितना भला?

PMFBY: प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसान संग बीमा कंपनियों का हुआ कितना भला?

कृषि मंत्री तोमर ने सदन में दी जानकारी : बीमा दावे पर 1.19 करोड़ का भुगतान किया

बीमा कंपनियों को 40 हजार करोड़ की कमाईः मीडिया रिपोर्ट्स

खेती को मुनाफे का धंधा बनाने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें विभन्न प्रोत्साहन योजनाएं संचालित कर रही हैं। कृषि फसल को प्राकृतिक आपदा या अन्य किसी वजह से हुए नुकसान आदि के कारण, किसान को हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए फसल बीमा योजना भी, इन्हीं कृषि प्रोत्साहन योजनाओं में से एक योजना है।

पीएमएफबीवाई (PMFBY)

केंद्रीय स्तर पर संचालित, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana – PMFBY) से भी देश के किसानों के आर्थिक नुकसान की भरपाई का प्रबंध करने केंद्र सरकार ने सुविधा प्रदान की है। इस योजना को लागू करने का उद्देश्य किसानों को फायदा पहुंचाना है, हालांकि कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीते पांच सालों के दौरान कंपनियों से ज्यादा भला कृषि बीमा करने वाली कंपनियों का हुआ है। इन मीडिया रिपोर्ट्स को कृषि मंत्री द्वारा प्रस्तुत जानकारी के बाद बल मिला है। न्यूज रिपोर्ट्स के अनुसार, वर्ष 2016-17 से 2021-22 के कालखंड में, कृषि बीमा करने वाली विभिन्न इंश्योरेंस कंपनियों को 40,000 करोड़ रुपए की कमाई हुई है।


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इतनी कंपनियां करती हैं बीमा

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई/PMFBY) के अंतर्गत बीमा सुविधा प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार ने 18 बीमा कंपनियों को काम सौंपा है। इन कंपनियों का काम किसानों को प्राकृतिक आपदा से होने वाले फसल के नुकसान के लिए बीमा राशि के रूप में नियमानुसार जरूरी वित्तीय मदद प्रदान करना है।

केंद्रीय मंत्री ने दी जानकारी

भारत सरकार में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कृषि बीमा के बारे में ब्यौरा प्रस्तुत किया है। केंद्रीय मंत्री के मुताबिक बीमा कंपनियों के पास प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई/PMFBY) के अंतर्गत डेढ़ लाख करोड़ (कुल 159,132) रुपए से अधिक की प्रीमियम राशि जमा की गई थी। उन्होंने बताया कि, किसानों द्वारा प्रस्तुत बीमा संबंधी दावे के लिए 119,314 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया गया। आपको बता दें कि, इस योजना से जुड़े किसानों को मामूली प्रीमियम जमा करना पड़ता है।

4190 रुपए प्रति हेक्टेयर

एक समाचार माध्यम ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा राज्यसभा में दिए गए लिखित जवाब पर न्यूज रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई/PMFBY) के अंतर्गत खरीफ 2021-22 सीजन तक किसानों द्वारा प्रस्तुत बीमा के दावों के भुगतान के रुप में 4190 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से बीमा राशि का भुगतान किया गया।

साल 2020 में बदले नियम

बीते 6 साल पहले शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई/PMFBY) में वर्ष 2020 में बदलाव किया गया था। इस बदलाव के तहत अब किसान अपनी स्वैच्छिक भागीदारी से भी योजना में जुड़ सकते हैं।


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72 घंटे का समय

योजना के पात्र किसान को फसल के नुकसान की सूचना संबंधित पात्र केंद्र अथवा अधिकारी तक पहुंचाने के लिए समय निर्धारित किया गया है। नुकसान प्रभावित किसान को इस योजना के तहत फसल बीमा ऐप, सीएससी केंद्र या निकटतम कृषि अधिकारी के माध्यम से नुकसान के 72 घंटों के अंदर फसल नुकसान की सूचना प्रस्तुत करना अनिवार्य है। इस प्रक्रिया से किसानों को हुए नुकसान के बारे में फसल बीमा का दावा करने में आसानी हुई है। योजना की खास बात यह भी है कि इसमें दावा राशि का भुगतान सीधे किसानों के खाते में किया जाता है।

इतना प्रीमियम भुगतान

  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई/PMFBY) में फसल बीमा कराने के इच्छुक किसान को खरीफ फसल की बीमा राशि का दो प्रतिशत अदा करना होता है।
  • रबी फसल के लिए यह राशि और कम है। रबी की फसल के लिए किसान को 1.5 फीसदी बीमा राशि का भुगतान करना होगा।
  • बागवानी एवं वाणिज्यिक फसलों के बीमा के लिए किसान को प्रीमियम बतौर 5 प्रतिशत राशि का भुगतान करना होगा।
पीएमएफबीवाई के राष्ट्रीय फसल बीमा पोर्टल (एनसीआईपी) से कृषि बीमा कार्य को और आसान बनाने की कोशिश सरकार ने की है। फसल बीमा मोबाइल ऐप नामांकन प्रक्रिया को आसान बनाता है। एनसीआईपी इसके अलावा प्रीमियम प्रेषण, भूमि रिकॉर्ड के एकीकरण आदि में भी किसान के लिए मददगार है।
पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

पराली मैनेजमेंट के लिए केंद्र सरकार ने उठाये आवश्यक कदम, तीन राज्यों को दिए 600 करोड़ रूपये

खरीफ का सीजन चरम पर है, देश के ज्यादातर हिस्सों में खरीफ की फसल तैयार हो चुकी है। कुछ हिस्सों में खरीफ की कटाई भी शुरू हो चुकी है, जो जल्द ही समाप्त हो जाएगी और किसान अपनी फसल घर ले जा पाएंगे। 

लेकिन इसके साथ ही एक बड़ी समस्या किसान अपने खेत में ही छोड़कर चले जाते हैं, जो आगे जाकर दूसरों का सिरदर्द बनती है, वो है पराली (यानी फसल अवशेष or Crop residue)। पराली एक ऐसा अवशेष है जो ज्यादातर धान की फसल के बाद निर्मित होता है। 

चूंकि किसानों को इस पराली की कोई ख़ास जरुरत नहीं होती, इसलिए किसान इस पराली को व्यर्थ समझकर खेत में ही छोड़ देते हैं। कुछ दिनों तक सूखने के बाद इसमें आग लगा देते हैं ताकि अगली फसल के लिए खेत को फिर से तैयार कर सकें। 

पराली में आग लगाने से किसानों की समस्या का समाधान तो हो जाता है, लेकिन अन्य लोगों को इससे दूसरे प्रकार की समस्याएं होती हैं, जिसके कारण लोग पराली जलाने (stubble burning) के ऊपर प्रतिबन्ध लगाने की मांग लम्बे समय से कर रहे हैं। 

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विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर भारत में ख़ास तौर पर पंजाब और हरियाणा में जो भी पराली जलाई जाती है, उसका धुआं कुछ दिनों बाद दिल्ली तक आ जाता है, जिसके कारण दिल्ली में वायु प्रदुषण के स्तर में तेजी से बढ़ोत्तरी होती है। 

इससे लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है, इसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से पराली के प्रबंधन को लेकर ठोस कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। 

पराली की वजह से लोगों को लगातार हो रही समस्याओं को देखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों ने अलग-अलग स्तर कई प्रयास किये हैं, जिनमें पराली का उचित प्रबंधन करने की भरपूर कोशिश की गई है ताकि किसान पराली जलाना बंद कर दें। 

इस साल भी खरीफ का सीजन आते ही केंद्र सरकार ने पराली के मैनेजमेंट (फसल अवशेष प्रबन्धन) को लेकर कमर कस ली है, जिसके लिए अब सरकार एक्टिव मोड में काम कर रही है। 

अभी तक सरकार दिल्ली के आस पास तीन राज्यों के लिए पराली प्रबंधन के मद्देनजर 600 करोड़ रुपये का फंड आवंटित कर चुकी है। यह फंड हरियाणा, पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली मैनेजमेंट के लिए जारी किया गया है।

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ने पराली मैनेजमेंट के लिए राज्यों की तैयारियों की समीक्षा के लिए बुलाई गई उच्चस्तरीय बैठक में बताया कि, पिछले 4 सालों में केंद्र सरकार ने पराली से छुटकारा पाने के लिए किसानों को 2.07 लाख मशीनों का वितरण किया है। 

जो पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसानों को वितरित की गईं हैं। बैठक में तोमर ने कहा कि केंद्र सरकार किसानों के द्वारा पराली जलाने को लेकर बेहद चिंतित है। 

पराली मैनेजमेंट के मामले में राज्यों की सफलता तभी मानी जाएगी जब हर राज्य में पराली जलाने के मामले शून्य हो जाएं, यह एक आदर्श स्थिति होगी। 

इस लक्ष्य को पाने के लिए राज्य सरकारों को कड़ी मेहनत करनी होगी और अपने यहां के किसानों को पराली मैनेजमेंट के प्रति जागरूक करना होगा, ताकि किसान पराली जलाने के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं को गंभीरता से समझ पाएं।

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बैठक में कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि पराली जलाने के बेहद नकारात्मक परिणाम हमारे पर्यावरण के ऊपर भी होते हैं। ये परिणाम अंततः लोगों के ऊपर भारी पड़ते हैं। 

ऐसे में राज्यों के जिलाधिकारियों को उच्चस्तरीय कार्ययोजना बनाने की जरुरत है, ताकि एक निश्चित अवधि में ही इस समस्या को देश से ख़त्म किया जा सके। 

मंत्री ने कहा कि राज्यों को और उनके अधिकारियों को गंभीरता से इस समस्या के बारे में सोचना चाहिए कि इसका समस्या का त्वरित समाधान कैसे किया जा सकता है।

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कृषि मंत्री तोमर ने कहा कि हमें वेस्ट को वेल्थ में बदलने की जरुरत है, यदि किसानों को यह समझ में आ जाएगा कि पराली के माध्यम से कुछ रुपये भी कमाए जा सकते हैं, तो किसान जल्द ही पराली जलाना छोड़ देंगे। 

इसलिए कृषि अधिकारियों को चाहिए कि पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर के बारे में किसानों को बताएं। जहां भी पूसा संस्थान द्वारा तैयार बायो-डीकंपोजर लगा हुआ है वहां किसानों को ले जाकर उसका अवलोकन करवाना चाहिए, 

साथ ही इसके अधिक से अधिक उपयोग करने पर जोर दें, जिससे किसानों को यह पता चल सके कि पराली के द्वारा उन्हें किस प्रकार से लाभ हो सकता है।

प्राकृतिक खेती के जरिये इस प्रकार होगा गौ संरक्षण

प्राकृतिक खेती के जरिये इस प्रकार होगा गौ संरक्षण

मध्य प्रदेश राज्य के मुरैना जनपद में आयोजित हुए कृषि मेला के दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया है, कि खेती में डीएपी, यूरिया का बेहद कम इस्तेमाल करें। साथ ही, जैव उर्वरक व नैनो यूरिया का प्रयोग बढ़ना चाहिए। किसानों को जैविक व प्राकृतिक खेती की तरफ रुख करना चाहिए। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों से प्राकृतिक खेती पर अधिक ध्यान देने की बात कही है। मध्य प्रदेश के मुरैना जनपद में आयोजित कृषि मेले में उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के माध्यम से गौवंश की उपयोगिता में वृद्धि होगी। गाय के गोबर व गौमूत्र के प्रयोग से उर्वरक निर्मित करेंगे तो निश्चित रूप से कम लागत लगेगी। साथ ही, इस प्रकार से उत्पादन करना स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद रहेगा। आज आवश्यकता इस बात की है, कि खेती की लागत कम हो और किसानों की आमदनी बढ़ती रहे। उत्पाद उम्दा किस्म के होने चाहिए एवं खेतों में सूक्ष्म सिंचाई का प्रयोग करना चाहिए, इससे जल की बचत भी होगी और फसल की पैदावार भी होगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का यह भी कहना है, कि भारत में ८० प्रतिशत लघु किसान हैं, जिनकी सहायता के लिए १० हजार नवीन एफपीओ गठित करने की योजना तैयार की है। जिसके लिए ६,८६५ करोड़ खर्च करेगी केंद्र सरकार।


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खाद्य तेलों की कमी की भरपाई होगी

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि तिलहन की घटोत्तरी व आयात निर्भरता को कम करने हेतु सरकार द्वारा ऑयल पाम मिशन बनाया गया है। जिसके लिए ११ हजार करोड़ रूपये खर्च करेगी सरकार। किसान तकनीक का इस्तेमाल करेंगे तो इसका लाभ आने वाली पीढ़ियों को भी होगा एवं गांव देहातों में नवीन आय के स्त्रोत उत्पन्न होंगे। भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए आर्थिक संकट व मुसीबत की घड़ी में कृषि क्षेत्र अपनी अहम भूमिका निभाता है

इन किसानों को काफी लाभ मिलेगा

नरेंद्र तोमर ने कहा कि यह कृषि मेला अंचल, चंबल व ग्वालियर के लिए बेहतर कृषि के हिसाब से बहुत सहायक साबित होगा। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर ने इस कृषि मेले के दौरान लगभग हजारों किसानों का मार्गदर्शन किया एवं प्रशिक्षण भी दिया साथ ही किसानों की सहायता हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) समेत पुरे देश से आये हुए कृषि संस्थानों से जुड़े वैज्ञानिकों को साधूवाद दिया। साथ ही, मेले को आयोजित करने हेतु समस्त सहायक निधियों का आभार व्यक्त किया। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=BwU3hGXNodM&t=86s[/embed]

नरेंद्र तोमर ने कहा किसानों की आय दोगुनी हो गयी है

नरेंद्र तोमर का कहना है कि आज कृषि संबंधित योजनाएं आय बढ़ाने से संबंधित बनाई गयी हैं जबकि पूर्व में सिर्फ पैदावार से संबंधित योजनाएं बनाई जाती थी। आय में वृद्धि हेतु कई सारी योजनाएं लागू की जा रही हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों की आय दोगुना से ज्यादा करने के लिए कहा उसके उपरांत केंद्र एवं राज्य सरकारों व किसानों ने एक जुट होकर इस ओर भरपूर प्रयास किए हैं। श्रीनगर (कश्मीर) में केसर का उत्पादन होता है, इसलिए केंद्र सरकार द्वारा केसर पार्क स्थापित हुआ साथ ही अन्य सहायक सुविधाऐं प्रदान की जिसके परिणामस्वरूप १ लाख रूपये किलो भाव से बढ़कर २ लाख रूपये किलो हो गयी है।